रहस्यमाई चश्मा भाग - 68
मंगलम चौधरी ने सिंद्धान्त को पिता नत्थू के अंतिम संस्कार का आदेश दिया और सारी व्यवस्था स्वंय किया और मजदूरों कि उस्थिति में नत्थू का पूरे विधिविधान से अंतिम संस्कार सिंद्धान्त ने किया जिसे मंगलम चौधरी ने अपनी देख रेख में सम्पन्न कराया और श्राद्ध कर्म पूर्ण कराया जिसके बाद सिंद्धान्त को पिता नत्थू की हत्या के आरोप में पुलिस ने अपनी कस्टडी में लेकर जेल भेज दिया लगभग पंद्रह दिन बीत चुके थे शुभा पूर्ण रूप से स्वस्थ हो चुकी थी शुभा सुयश एव के साथ जुट मिल के प्रत्येक मजदूर से मिले और उन्होंने बहुत भाऊक होते हुए कहा यह मिल आप सबकी है आपके परिवार बीबी। बच्चों परिवार परिवरिश कि जननी है मैं तो सिर्फ इसका रखवाला हूँ वास्तव में प्रत्येक मजदूर ही असली मालिक है,,,,,,,
मंगलम चौधरीं कि सभी मिले सुरक्षित रही और पहले से बेहतर चलने लगी मजदूरों को भी अपनी गलती का एहसास हो चुका था । मंगलम चौधरी जिनको शुभा सुयश को लेकर दरभंगा पहुंचे दरभंगा निवासियों को जब पता चला कि मंगलम चौधरीं कि पत्नी शुभा भी साथ आ रही है तो बड़े धूम धाम से उनका स्वागत किया गया और कुल पुरोहित चतुरानन झा के नेतृत्व निर्देशन में शुभा मंगलम चौधरीं का विधिवत विवाह संपन्न हुआ विवाहोत्सव में श्यामाचरण झा जी के नेतृत्व में शुभा कन्या इंटरमीडिएट कालेज निर्माण समिति के सारे सदस्य एव मंदिर निर्माण समिति के सारे सदस्य आये हुए थे जिनके द्वारा विद्यालय के शुभारम्भ एव मंदिर के पुनर्निर्माण के बाद जनता को समर्पण के लिए निवेदन किया गया,,,,,,,
मंगलम चौधरीं ने तिथि निर्धारित करवाया विद्वानों के परामर्श से निर्धारित तिथि पर मंगलम चौधरीं सुयश एव शुभा पहुंचे पूरे गांव में उत्साह का वातावरण था यशोवर्धन के दामाद और गांव के पूज्य मंगलम चौधरीं एव शुभा के स्वागत अभिनंदन के लिए सभी ने पलक पावड़े बिछा रँखे थे शुभा ने अपने हाथों से विद्यालय एव मंदिर को जनता को समर्पित किया गांव के प्रत्येक परिवार ने मंगलम एव शुभा को अपने घर बुलाकर स्वागत वंन्दन अभिनंदन मैथिल परम्पराओ के अनुरूप किया चारो तरफ हर्ष उल्लास का बातावरण था शुभा मंदिर के पुजारी सदानंद जी के प्रति अपनी व्यक्तिगत कृत्यगता वक्त किया और अपने पिता की पीढ़ियों की खेती बारी जो सरकारी देख रेख में थी,,,,,
को मंदिर को दान कर दिया कुछ विद्यालय को दान कर दिया एक महीने तक अपने मायके पति पुत्र के साथ रहने के बाद शुभा सुयश मीमांशा मंगलम चौधरीं दरभंगा लौटकर आये सिंद्धान्त पर नत्थू की हत्या का मुकदमा चला जिसमे विद्वान न्यायधीश ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया पूरे दो वर्ष बीतने के बाद शुभा ने पति मंगलम चौधरी से कालाहांडी के वन प्रदेश में जाने का अनुरोध किया मंगलम चौधरीं शुभा सिंद्धान्त सुयश एव मीमांशा के साथ कालाहांडी पहुंचे और आदिवासी समाज के बीच पहुंचे आदिवासी समाज अपनी मुँह बोली बेटी को देखते ही हर्ष उल्लास से स्वगत किया,,,,,
मुखिया चन्दर ने शुभा द्वारा आदिवासी परिवारो एव बच्चों को तरह तरह के उपहार दिया गया शिवालय के पूजारी एव संत समाज भी आया शुभा को सभी ने आशीर्वाद दिया स्नेह दिया शुभा ने शिवालय के निर्माण एव आदिवासी समाज की शिक्षा स्वास्थ के लिए स्कूल एव अस्पताल का निर्माण कार्य कराया जिसकी देख रेख वह स्वंय करती वर्ष में दो चार बार अवश्य वह काला हांडी जाती आज भी कालाहांडी आदिवासी समाज मे एक कहावत प्रचलित है शेरपुर कि शेरनी कालाहाण्डी कि ममता दुलार माँ।
समाप्त
KALPANA SINHA
05-Sep-2023 12:16 PM
Amazing
Reply
Varsha_Upadhyay
04-Sep-2023 09:30 PM
Nice
Reply